पदार्थों का घुलना एवं प्रथक्करण :
पदार्थों को शोधित करके इनके तत्वों को अलग करने की प्रक्रिया प्रथक्करण कहलाती है। अवयवी तत्वों को अलग-अलग प्राप्त करने की प्रमुख विधियाँ निम्न हैं-
1) छानना (filtration) – द्रव में अशुद्धि मिलाने पर उस अशुद्धि को अलग करने की प्रक्रिया ही छानना है।
छानने की प्रक्रिया के लिए एक फ़िल्टर पेपर लेकर उसे 4 भागों में मोड़ दिया जाता है और एक शंकु जैसी आकृति बना लेते हैं। इसे कीप के ऊपर लगा दिया जाता है। अब कीप को स्टैंड में लगाकर उसके नीचे बीकर रखकर द्रव में उपस्थित अशुद्धियाँ फ़िल्टर पेपर में ऊपर एक रुक जाती है, व शुद्ध द्रव नीचे एकत्रित हो जाता है।
2) निथारना (Decontatoin) : जब ठोस पदार्थ द्रव में घुलता नहीं है, तो वह बर्तन की तली में बैठ जाता है, इस प्रकार के अघुलनशील पदार्थों को अलग-अलग करने की प्रक्रिया निथारना कहलाती है।
निथारने की प्रक्रिया के लिए पदार्थ को बीकर में डालकर कुछ समय के लिए स्थिर अवस्था में रख दिया जाता है। थोड़े समय बाद बीकर में अविलेय पदार्थ बीकर की तली में बैठ जाता है, फिर शांत द्रव को कांच की छड़ के माध्यम से दुसरे बर्तन में अलग कर लेते हैं व अघुलनशील अशुद्धियाँ अलग हो जाति हैं
3) आसवन (Distilliation) : वाष्पन व संघनन की प्रक्रिया द्वारा शुद्ध पदार्थ प्राप्त करना आसवन कहलाता है। आसवन व संघनन की प्रक्रिया साथ-साथ चलती है।
आसवन → वाष्पन
+ संघनन
(Distillation)
(Evaporation)
(Londensation)
एक शंक्वाकार फ्लास्क में अशुद्ध जल लेकर उसके मुंह पर द्विक में कार्क लगा दिया जाता है। कर्क के
एक छिद्र में निकास नाली दूसरे छिद्र में साधारण नली जो अशुद्ध जल डूबी रहती है। निकास नाली को संघनित्र से से गुजरटे हुए एक फ्लास्क में ले जाते है, जिसमे शुद्ध जल एकत्रित होता है। शंक्वाकार फ्लास्क को स्प्रिट लैंप की सहायता से गर्म किया जाता है, जिससे शुद्ध जल वाष्पित हो जाता है व अशुद्धियाँ फ्लास्क में रह जाती हैं। संघनित्र में ठण्डा जल होता है, जो जलवाष्प को ठण्डा कर देती है। इस प्रकार शुद्ध जल बीकर में एकत्रित कर लिया जाता है।
4) उर्ध्वपातन (Sublination) : पदार्थ को गर्म करने पर ठण्डा वह सीधे गैस में परिवर्तित हो जाता है, यह क्रिया ऊर्ध्वपातन कहलाती है। जब वाष्प को ठण्डा किया जाता है तो वह पुनः द्रव अवस्था में परिवर्तित हो जाती है।
इस क्रिया में एक कांच के बर्तन में अशुद्ध पदार्थ को रखकर उल्टा कीप रख दी जाती है। कीप के उपरी सिरे को निकास नली से सम्बन्धित का एक पात्र से जोड़ दिया जाता है। अशुद्ध पदार्थ को गर्म करने पर यह ठोस पदार्थ वाष्प के रूप में परिवर्तित जाता है और पात्र में एकत्रित कर लिया जाता है। पात्र को बर्फ के माध्यम से ठण्डा करके वाष्पित पदार्थ को ठोस रूप में प्राप्त किया जा सकता है। इस विधि से कपूर, नेफ्थलीन, बेन्जोइक पदार्थों को शुद्ध किया जाता है।
5) क्रिस्टलीय (Crystallisation) : जब सभी अवयव एक द्रव में विलेय हों परन्तु उनकी विलेयता भिन्न-भिन्न हों, तो मिश्रण को द्रव में घोलने के बाद वाष्पीकरण व शीतलीकरण से अवयव क्रिस्टल रूप में परिवर्तित किया जाता है।
जैसे- शोर के मिश्रण में से नमक व शोरे को प्रथक करना।
6) वैद्युत- अपघटन – किसी द्रव के अम्लीय विलयन में विद्युत् धारा प्रवाहित करने पर द्रव धनायन व ऋणायन एनोड व धनायन कैथोड पर एकत्रित होते है। यह क्रिया वैद्युत-अपघटन कहलाती है।
H2 O
<--------> H2+ + O-
H2+ + O-
<--------> H2 O
H आकर के बर्तन में अशुद्ध जल को भरकर विद्युत् प्रवाहित की जाती है। जिससे एनोड पर ओक्सीजन व कैथोड पर H2 एकत्रित हो जाती है। जो निकास नलियों के के द्वारा संयोजित होकर जल का निर्माण करती है। यह शुद्ध जल होता है, और अशुद्धि H आकर के बर्तन में शेष रः जाति है।
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