75 बाल विकास पुनरावृत्ति बिंदु (from The SCERT Book)


1. गर्भावस्था से किशोरावस्था तक की सभी समस्याएँ बाल-विकास की परिसीमा या क्षेत्र में आती हैं।
2. ‘‘बाल-मनोविज्ञान एक वैज्ञानिक अध्ययन है, जिसमें बालक के विकास का अध्ययन गर्भकाल के
प्रारम्भ से किशोरावस्था की प्रारम्भिक अवस्था तक करता है।’’ यह कथन है- क्रो एवं क्रो का
3. बाल विकास की तीन अवस्थाएं-
शैशवावस्था (जन्म से 5 वर्ष)
बाल्यावस्था (5 से 12 वर्ष)
किशोरावस्था (12 से 18 वर्ष)
4. 3 से 9 वर्ष तक शारीरिक विकास की गति तीव्र
5. किशोरावस्था विभिन्न परिवर्तनों की अवस्था

6. जन्म के तीन माह तक शिशु क ेवल अपन े हाथ-पैर चलाता है।
7. दसवें माह से 1 वर्ष तक वह बोलन े का अन ुकरण करता है।
8. पांचवे वर्ष में शिशु हल्की व भारी वस्त ुओं में अन्तर करन े लगता है।
9. बाल्यावस्था में जिज्ञासु प्रवृत्ति बढ़ती है।
10. बाल्यावस्था में ख ेल उनकी दिनचर्या का अंग बन जात े हैं।

11. किशोरावस्था में बच्चा बाल्यावस्था से किशोरावस्था की ओर बढ ़ता है।
12. किशोरावस्था जीवन का कठिन काल है, क्योंकि न तो वह बच्चा होता है न वयस्क।
13. किशोरावस्था में बुद्धि का अधिकतम विकास हो जाता है।
14. बुद्धि परीक्षणों की हमारे जीवन में बहुत उपयोगिता है।
15. पयाजे क े संज्ञानात्मक विकास की मुख्य चार अवस्थाएं है-
संवेदी पेशीय अवस्था (0-2)
प्राक्संक्रियात्मक अवस्था (2-7)
मूर्त  संक्रिया अवस्था (7-11)
औपचारिक संक्रिया अवस्था (11 से.. )

16. जन्म के बाद बच्चों की अभिव्यक्ति स्पष्ट नही होती, परन्तु धीरे-धीरे समय बढ़ने पर स्पष्ट होने
लगती है।
17. संवेग के मुख्य तीन प्रकार है-
(1) क्रोध (2) भय (3) प्र ेम
18. 1st माह में शिशु की प्रतिक्रिया स्पष्ट नही होती।
19.एक वर्ष की उम्र में वह लोगों से हिल मिल जाता है।
20. 5th वर्ष में वह दूसरों से समायोजन करने लगता है।
21. बाल्यावस्था मे बालक/बालिका अपन े अलग-अलग समूहों का निर्माण करत े हैं व उन्हीं के
आद ेशों का पालन करते हैं ।
22. किशोरावस्था में सजन े संवरन े में विश ेष रुचि होती है व विपरीत लिंगीय आकर्षण होता है।
23. भाषा विकास स्वतः होती है।
24. भाषा अन ुकरण से सीखी जाती है।

25. जन्म के समय शिशु क ेवल रोता है।
26. दो वर्ष का बालक अपनी आवश्यकता पूर्ति  करने तक के लिए सभी शब्दों का ज्ञान कर लेता है।
27. बाल्यावस्था में शब्द भण्डार बढ ़ता है।
28. किशोरावस्था में किशोर/किशोरियों की भाषा साहित्यिक हो जाती है।
29. सृजनात्मकता वह योग्यता है जो किसी वस्त ु को खोजने या सृजन से सम्बन्धित होती है।
30. शैशवावस्था, बाल्यावस्था व किशोरावस्था में सृजनात्मक क्षमता का विकास नितान्त आवश्यक है।
31.सृजनात्मक क्षमता का विकास विभिन्न प्रकार की पाठसहगामी क्रियाओं द्वारा कर सकते हैं।
32. सीखना जीवन भर चलने वाली सतत ् प्रक्रिया है।
33. सीखना व्यवहार में परिवर्त न है।
34. अधिगम को प्रभावित करन े वाले कारकों में बालक का शारीरिक व मानसिक स्वाथ्य,
परिपक्वता, सीखने की इच्छा, प्रेरणा, विषय सामग्री का स्वरूप, वातावरण, शारीरिक एवं
मानसिक थकान आदि प्रमुख है।

35. अधिगम विधियाँ क्रियाओं के संचालन का एक विशिष्ट अंग है।
36. शिक्षक जब अपने शिक्षण को छात्रों के स्तरानुसार रुचिकर, बोधगम्य, तार्कि क एवं सरलतम
बनाता है, तभी वह अपने कक्षा-शिक्षण में सफल होता है। इसलिए शिक्षक/प्रशिक्षु के लिए
अधिगम की प्रभावशाली विधियों का ज्ञान बहुत आवश्यक है।
37. अधिगम की प्रभावशाली विधियाँ हैं-करके सीखना, अनुकरण द्वारा सीखना, निरीक्षण करके
सीखना, परीक्षण करके सीखना, सामूहिक विधियों द्वारा सीखना, सम्मेलन व विचार गोष्ठ
विधि, प्रोजेक्ट विधि।
38. अधिगम क्रिया में सभी विधि का अपना अलग-अलग महत्व  है
39. थार्नडाइक द्वारा प्रतिपादित सीखने के दो महत्वपूर्ण नियम बताए गए है जिसके प्रयोग से
अधिगम अधिक प्रभावशाली होता है।
40. सीखने के मुख्य नियम- 1. तत्परता का नियम
                                         2. अभ्यास का नियम
                                         3. परिणाम का नियम।
41. सीखने के गौण नियम- 1. मनोवृत्ति का नियम

                                        2. बहुअप्रतिक्रिया का नियम
                                        3. आंशिक क्रिया का नियम
                                        4. अनुरूपता का नियम
                                        5. सम्बन्धित परिवर्तन का नियम।
42. सीखने के नियमों का प्रयोग कर शिक्षक छात्रों में अधिगम के प्रति रुचि, उत्साह एवं संतोष
विकसित कर सकते हैं।
43. सिद्धान्त ज्ञान के क्षेत्र में पहुंचने  का साधन है।
44. सीखने के विभिन्न सिद्धान्तों का प्रतिपादन मनोवैज्ञानिकों द्वारा किया गया।

45. प्रयास एवं त्रुटि के सिद्धान्त के प्रतिपादक थार्नडाइक महोदय थे।
46. सम्बद्ध प्रतिक्रिया का सिद्धान्त रूसी मनोवैज्ञानिक ई0एल0 पैवलव ने किया।
47. सूझ के सिद्धान्त में सीखना अचानक होता है।
48. पियाज े व ब्रूनर ने  सीखने के संज्ञानात्मक सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।
48. व्योगास्की ने  संज्ञानात्मक विकास में सामाजिक अन्तक्र्रिया पर बल दिया।
49. क्रिया प्रसूत अन ुबन्धन के प्रतिपादक स्किनर महोदय हैं।
50. हम सीखने की गति को एक ग्राफ पेपर पर प्रदर्शित करते है, तो उसे सीखने का वक्र कहते
हैं।
51. सीखते समय अचानक सीखने की गति का रूक जाना सीखने में पठार कहलाता है।
52. सीखने में पठार आने के कारण विभिन्न हो सकत े हैं, ज ैस े रुचि व प्र ेरणा में कभी, सीखन े
की अन ुचित विधि, थकान आदि।

53. सीखने का स्थानान्तण अधिगम की क्रिया को सरल बनाता है।
54. स्थानान्तरण -सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रकार का होता है।
55. स्थानान्तरण से मानसिक शक्तियों का विकास होता है, जिसका प्रयोग हम अन्य कार्यों मे ं करत े
हैं।
56. सीखने की प्रक्रिया में ध्यान का महत्वपूर्ण स्थान है।
57. ध्यान में चेतन मन का संयोग आवश्यक है।
58. ध्यान दो प्रकार के होते है- 1-ऐच्छिक ध्यान 2-अन ैच्छिक ध्यान
59. ध्यान को प्रभावित करने वाले दो कारक है-1-वाह्य करक 2-आन्तरिक कारक


60.शिक्षण के समय बच्चों का ध्यान आकृष्ट करने में शिक्षक/प्रशिक्षु की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
61. सीखने की प्रक्रिया में ध्यान क े साथ-साथ रुचि भी महत्वपूर्ण है।
62. हमारा ध्यान उसी पर केन्दि ्रत होगा जिसमें हमारी रुचि होगी।
63. रुचि वह प्रेरक शक्ति है जो हमें किसी व्यक्ति, वस्त ु या क्रिया के प्रति ध्यान द ेने के लिए प्रेरित
करती है।
64. रुचि दो प्रकार की होती है -1. जन्मजात रुचि 2.अर्जि त रुचि।
65. रुचि और ध्यान का घनिष्ठ सम्बन्ध हैं।


66. शिक्षा में रुचि एवं ध्यान दोनों की उपयोगिता है।
67. बच्चों की रुचि का उपयेाग करके हम उन्हे ं उचित शिक्षा प्रदान कर सकते हैं।
68. अच्छी स्मरण शक्ति का अर्थ सीखना, याद करना तथा पुनः स्मरण है।
69. मनुष्य की स्मरण शक्ति अन्य प्राणियों की अपेक्षा उच्च होती है।
70. स्मृति दो प्रकार की होती है- 1. अल्पकालीन 2. दीर्घ कालीन


71. स्मृति को प्रभावित करने वाले कारक है- रूचि, प्रेरणा, सम्बद्धता स्मरण विधि, शारीरिक एवं मानसिक
स्वास्थ्य, शिक्षक का व्यवहार एवं उत्तम वातावरण।
72. विस्मरण का भी हमार े जीवन में महत्व है।
73. विस्मरण का अर्थ भूल जाना है।
74. अच्छे स्मरण क े लिए विस्मरण का होना आवश्यक है।
75. विस्मरण का कारण है- बाधा का उपस्थित होना, दमन का होना, भावात्मक बाधा, समय का
प्रभाव, मादक द ्रव्यों का सेवन, विषय का स्वरूप आदि। 
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