2. शिक्षण का अर्थ सूचना, ज्ञान व जानकारी देना है।
3. शिक्षण का अर्थ सिखाना व बालकों को अपने वातावरण के अन ुक ूल बनने में सहायता करना है।
4. शिक्षण शिक्षार्थी को उत्प्रेरित करने, मार्गदर्शन प्रदान करने व क्रियाशील रखने की प्रक्रिया है।
5. शिक्षण त ैयारी का एक साधन व सीखने का संगठन है।
6. शिक्षण शिक्षक का स्वमूल्यांकन है।
7. शिक्षण का उद्द ेश्य मात्र तथ्यों का स्मरणीकरण न होकर दक्षता की प्राप्ति तथा ज्ञानात्मक,
8. भावात्मक व क्रियात्मक योग्यताओं का विकास है।
9. रायबर्न के अन ुसार- ‘‘शिक्षण का मुख्य उद्द ेश्य विद्यार्थी को इस योग्य बनाना है कि वह
सफल जीवन जी सके।’’
10. बदलते समय के साथ-साथ बच्चों के स्वभाव, रुचियों, सोचने, समझने व सीखने की गति में भी
आश्चर्यजनक रूप से परिवर्तन हुआ है जिसके कारण आज शिक्षण कार्य को अधिक व्यावहारिक
बनाने की जरूरत है ताकि विद्यालय का हर बच्चा अपनी रुचि, क्षमता, स्तर व गति क े अन ुरूप सीख
सके।
11. सामान्यतः सन्द ेशों एवं विचारों के आदान-प्रदान को हम पारस्परिक सम्प्रेषण कहते हैं। सम्प्रेषण का
वास्तविक अर्थ होता है- एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को सूचनाओं एवं संद ेशों को भेजना तथा प्राप्तकर्ता
द्वारा उन्हें ठीक और सही अर्थ में समझना, जिस रूप और अर्थ में संप्रेषक चाहता है। सम्प्रेषण को आंग्ल
भाषा में ‘कम्यूनिकेशन’ कहा जाता है। इस आंग्ल भाषीय शब्द का निर्माण लैटिन शब्द ‘कम्यूनी’
से हुआ है। इसका आशय सामान्य विचारों, भावनाओं, सूचनाओं के आदान-प्रदान से होता है।
12. एक व्यक्ति द्वारा दूसर े व्यक्ति को सूचना या जानकारी दी जाती है और दूसरा व्यक्ति समझ लेता है
तो वह सम्प्र ेषण कहलाता है।
13. शिक्षण की समस्त प्रक्रिया विभिन्न प्रकार से ज्ञान, बोध एवं समझ विकसित करने के लिए की जाती
है। अतः ज्ञान की संरचना शिक्षण के स्रोत में एक महत्वपूर्ण संरचना है। इस प्रकार की शिक्षण प्रणाली
में शिक्षक तथा छात्र दोनो ही सक्रिय रहकर अन्तःक्रिया करते है। इसलिए प्रभावी सम्प्र ेषण का शिक्षण
14. सम्प्र ेषण में मुख्यतः पाँच घटक हैं- प्रेषक............माध्यम............संदेश ............ ग्राही............ प्रतिपुष्टि............
15. विषय ज्ञान देने वाला सम्प्र ेषण, विषय सामग्री संर्दश व ग्रहण करने वाला ग्राही कहलाता है।
16. सम्प्र ेषण के दो प्रकार हैं- वैयक्तिक व सामूहिक सम्प्रेषण। छात्रों की रुचियों, अभिरुचियों,
आवश्यकताओं तथा मानसिक योग्यताओं के अन ुसार शिक्षण र्दना वैयक्तिक सम्प्रेषण व जब एक ही
कक्षा में सामूहिक रूप से अध्यापक शिक्षण कार्य करता है, छात्र सामूहिक रूप से अध्यापक के ज्ञान
संर्दश को ग्रहण करत े है ं तो उसे सामूहिक सम्प्र ेषण कहते हैं।
17. प्रभावी सम्प्रेषण के तरीके हैं- उद्देश्यपूर्ण, निर्द ेशातमक सम्प्र ेषण, प्रेरणास्पद, बालकेन्दि ्रत, सुनियोजित, प्रजातान्त्रिक पद्धति पर आधारित, सक्रिय अध्यापन, क्रमबद्धता, सहयोग की भावना, पाठ की त ैयारी,पूर्वज्ञान से सम्बन्धित, सहायक सामग्री का समुचित प्रयोग, स्वतन्त्र वातावरण, आत्मविश्वास की जागृति,
उपचारात्मक शिक्षण, क्रियाशीलता आदि।
18. प्रत्येक व्यक्ति एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न है।
19. लोकत ंत्र का मूल भाव समानता तथा सहभागिता है।
20. सफल शिक्षण वही है जो व्यक्ति के जीवन से ज ुड़ा हो।
21. पढ ़ाये गये तथ्यों को बार-बार दोहराने से ज्ञान स्थायी हो जाता है।
23. मन में प्रसन्नता हो तो अधिगम की गति तीव्र होती है।
25. पाठ्य विषय को छोटे-छोटे पदों में बा ँटकर पढ ़ाने से शिक्षण प्रभावी होता है।
26. दक्षता का कार्यक्षेत्र छात्रों के स्तरानुकूल होना चाहिए।
27. अभ्यास कार्य के समय बालकों की थकान का विशेष ध्यान रखा जाय।
28. छात्र की अन्तर्निहित शक्तियों को ज्ञातकर उनमें दक्षता विकास हेतु प्रयास करने चाहिए।
29. छात्रों को अभ्यास कार्य के लिए अभिप्रेरित करने के लिए दक्षता को उनके तात्कालिक जीवन से
सम्बन्धित किया जाय।
30. छात्रों को आवश्यक मार्गदर्शन दिया जाय।
31. दक्षता विकास हेत ु छात्र तथा अध्यापकों को बड़े ही धैर्य के साथ मिलकर कार्य करना चाहिए, क्योंकि इसकी सम्प्राप्ति में समय भी लग सकता है।
32. शिक्षण में टी0एल0एम0 व अन्य शैक्षिक सामग्रियों का प्रयोग करके छात्रों के ज्ञान में वृद्धि करके दक्षता बढ़ायी जा सकती है। छात्रों की कठिनाइयों की प्रकृति भली-भाँति समझ लेनी चाहिए कि वे सामान्य हैं या विशिष्ट।
33. शिक्षण छात्रों की रुचि, स्तर व आवश्यकता केन्द्रित हो।
34. शिक्षण सूत्रों व शिक्षण सिद्धान्तों के आधार पर शिक्षण करना चाहिए।
35. विषयवस्त ु सीखने में जिस स्थल पर बच्चों को कठिनाई हो, वहीं से उपचारात्मक शिक्षण प्रारम्भ करना
चाहिए।
36. अभ्यास कार्यो ं में विविधता हो ताकि छात्र उसमें रुचि लें व कक्षा में नीरसता न रहे।
37. व्यक्तिगत भिन्नता के आधार पर छात्रों को दिये जाने वाले कार्यो ं में समय पर परिवर्तन किया जाना
चाहिए।
38. अभ्यास कार्य व अन्य कार्यों का सतत मूल्यांकन किया जाये।
39. कार्य या अभ्यास से मूल प्रयोजन की सन्तुष्टि होनी चाहिए।
40. छात्रों को समय पर उनकी प्रगति से अवगत कराया जाना चाहिए।
41. शक्षण कौशल को सीमित समय एवं आकार में सीखना- सूक्ष्म शिक्षण है।
42. पूर्व सेवा एवं सेवारत शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए यह विधि उपयोगी है।
43. नियोजन- शिक्षण- प्रतिपुष्टि- पुनः नियोजन- पुनः शिक्षण- पुनः प्रतिपुष्टि-सूक्ष्म शिक्षण के मुख्य
सोपान है।
44. सूक्ष्म शिक्षण के मुख्य सिद्धान्त है- अभ्यास, निरन्तरता, प्रबलन एवं मूल्यांकन का सिद्धान्त।
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