जीवन कौशल Notes 2 (From The SCERT Book)


मानवीय संसाधन के रूप में प्रधानाध्यापक
 विद्यालय शैक्षिक प्रक्रिया की एक आधारभूत इकाई है और प्रधानाध्यापक उसका केन्द्र बिन्दु है।
विद्यालय की समस्त क्रियाएं और विद्यालय का समस्त जीवन उसी पर मुख्य रूप से आधारित है।
विद्यालयीय शिक्षा व्यवस्था में प्रधानाध्यापक का व्यक्तित्व एक अच्छे प्रबन्धन के लिए उत्तरदायी होता
है। प्रधानाध्यापक के मार्गदर्शन में ही विद्यालय की समस्त श ैक्षिक तथा प्रशासनिक प्रक्रिया सम्पन्न होती
है। प्रधानाध्यापक अपनी संतुलित और अनुभवी दृष्टि, व्यक्तित्व की विशिष्टता एवं अपनी योग्यता आ ैर
कर्मठता से अपने स्कूल के शिक्षकों का नेतृत्व कर विद्यालय को निर्धारित लक्ष्य तक पहुंचाने में सफल
होता है प्रधानाध्यापक सौरमण्डल की एक ऐसी अद्भुत् शक्ति के समान है जिसके चारो ओर समस्त
अध्यापक ग्रहो ं की भांति कार्यरत रहत े हुए अपन े कार्य को पूरा करते हैं। प्रधानाध्यापक के शिक्षा सम्बन्धी
ज्ञान के उपर ही सम्पूर्ण शैक्षिक कार्यक्रम की उन्नति एवं सफलता निर्भर है। प्रधानाध्यापक शिक्षा व
शिक्षण प्रक्रिया के सम्पादन मे एक महत्वपूर्ण कारक है और उसका व्यक्तित्व पूरे विद्यालय प्रबन्धन
यथा- शिक्षकों की कार्यशैली व शिक्षण कला को प्रभावित करता है। अच्छे विद्यालय प्रबन्धन की दृष्टि
से प्रधानाध्यापक में निम्नांकित गुणों का होना आवश्यक है- 



1. प्रधानाध्यापक की बहुआयामी भूमिका
 विद्यालय में प्रधानाध्यापक की बहुआयामी भूमिका होती है तथा उसकी प्रत्येक भूमिका का
उद्देश्य विद्यार्थी को ऐसा वातावरण प्राप्त कराना हैे जिसमें वह अपने आप को विद्यालय की शैक्षिक व
अन्य गतिविधियों में स्वाभाविक रूप से संलग्न करते हुए सर्वांगीण विकास की दशा को प्राप्त कर सके।
प्रधानाध्यापक एक ओर छात्रों, अध्यापकों तथा अभिभावकों के प्रति उत्तरदायी होता है तो दूसरी ओर
समाज और विभाग के प्रति भी उसे दायित्व का निर्वहन करना होता है। प्रधानाध्यापक को यह बात
सदा ध्यान में रखने चाहिए कि विद्यालय एक सामाजिक संस्था है जिसकी स्थापना समाज में ऐसे
व्यक्तियों के लिए की गई है जो शारीरिक रूप शक्तिशाली, मानसिक रूप से जागरूक, नैतिक रूप से
इमानदार, भावात्मक रूप से स्थिर, सांस्कृतिक रूप सभ्य तथा सामाजिक रूप में दक्ष हो ं।
2. सुगमकर्ता
 प्रधानाध्यापक को बच्चों, अध्यापकों एवं विद्यालय के मध्य परस्पर सम्बन्ध स्थापित करने में एक
सुगमकर्ता की भूमिका मे ं अपने को सक्रिय रखना चाहिए उसे आज की आवश्यकता और बदलते
परिदृष्य को समझ कर उसी के अनुसार अपने कार्य क्षेत्र में बदलाव लाना चाहिये क्योंकि प्रबन्धन लक्ष्य
तथा आवश्यकता पर आधारित होता है। प्रबन्धन में इस बात का ध्यान रखें कि अच्छे नतीजे समुह


कार्य से हासिल होते हैं। प ्रधानाध्यापक की भूमिका को तभी सफल माना जायेगा जब वह विद्यालय में
ऐसे वातावरण की स्थापना करने में सफल हो सके जहां जाति, धर्म एव लिंग के आधार पर भेद-भाव
के स्थान पर ज्ञानात्मक अधिगम प्रक्रिया द्वारा छात्रों के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास की प्रक्रिया को
सफलतापूर्वक स्थापित कर सके।
3. कुशल प्रेरणादायक
 प्रधानाध्यापक मंे शिक्षक समूह में आत्मविश्वास बढाने के गुण होने चाहिये। वह शिक्षक के द्वारा
किये गये काम के सकारात्मक पहलुओं को जिक्र करके उन्हे प्रोत्साहित तथा उनके नकारात्मक पहलुओं
को पहचानने में उनकी मद्द कर सकता है। प्रेरणा एक प्रकार की भावात्मक शक्ति है जो लक्ष्य को
प्राप्त करने के लिये बल प्रदान करती है। प्रधानाध्यपक में सहयोगियों को आन्तरिक एवं वाहय
अभिप्रेरणा के माध्यम से प्रेरित करने का गुण होना चाहिये ताकि वे गुणों से प्रेरित होकर कार्य को सही
ढंग से कर सकें।


4. नेतृत्व की क्षमता
 किसी संस्था की कार्य प्रणाली को सुदृढ बनाने के लिये नियमों का पालन तथा अनुशासन परम
आवश्यक है। अतः प्रधानाध्यापक को चाहिये कि वह स्वयं नियमांे का पालन करते हुए एक ऐसी
विश्वसनीयता अपन े सहयोगियो ं के बीच उत्पन्न कर े कि उसका आचरण उस प ूर े समूह के लिए
अभिप्रेरित करने वाला हो। प्रधानाध्यापक विद्यालय का प्रतिबिम्ब है। जैसा प्रधानाध्यपक होगा वैसा ही 
विद्यालय होगा। उसकी प्रेरणा शक्ति से छात्र उन समस्त सुअवसरों का सदुपयोग करने में सफल हो
सकते है जो उन्हे विद्यालय में प्रदान किये गये है। प्रधानाध्यापक को ऐसे व्यक्तियों का नेतृत्व करना
होता है जो शैक्षिक योग्यता में प्रायः समान होते है। उसका नेतृत्व तभी सफल होगा जब उसे अपने
सहयोगियों एव ं अनुयायियों का पूर्ण सहयोग प्राप्त होगा। ऐसा सहयोग प्राप्त करने के लिये उसे
अधिनायक नही बनना है, बल्कि अपने साथियों की योग्यताओं तथा क्षमता में निष्ठा रखते हुए
लोकतांत्रिक दृष्टिकोण को ग्रहण करना होगा।
 5. मानवीय सम्बन्ध स्थापित करने की क्षमता-
 प्रधानाध्यापक में मानवीय सम्बंध स्थापित करने की योग्यता का होना अत्यन्त आवश्यक है।
उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि उनका लोक व्यवहार भौतिक पर्यावरण से प्रभावित न हो तथा निष्पक्ष
हो। प्रधानाध्यापक का कत्र्तव्य है कि वह अपन े सहयोगी अध्यापक मंडल तथा कर्मचारियों से मित्रवत
सम्पर्क बनाए। विद्यालय की समस्त क्रियाओं का आयोजन छात्रों के लिये होता है। अतः छात्रों के साथ
अधिक सम्पर्क स्थापित करने का प्रयास करना चाहिये। प्रधानाध्यापक को विद्यालय व अभिवावकों के
बीच की कडी के रूप में अपना उत्तरदायित्व ठीक से निभाना चाहियें।
6. कुशल प्रशासक एवं समय प्रबन्धक


 प्रधानाध्यापक का सबसे प्रमुख कत्र्तव्य विद्यालय का सफल संचालन करना है। विद्यालय का
सुचारू रूप से संचालन तभी संभव है जब प्रधानाध्यापक एक कुशल प्रशासक हो। कुशल प्रशासक होने
के लिये उसमें प्रशासकीय योग्यता होना चाहिये। वह कुशल प्रशासक तभी होगा जब उसमें अच्छा
नियोजन करने, अच्छा संगठन करने, शिक्षक एवं छात्रों से आसानी से काम लेने की क्षमता हो तथा
अन्य कर्मचारियो ं से उसके कार्य के प्रति अच्छे सम्बन्ध हो। प्रधानाध्यापक अपने लक्ष्य को ध्यान मे ं रखते
हुए उपलब्ध संसाधनों के आधार पर समस्त क्रियाओं को सही ढ ंग से क्रमायोजित करके करें तो प्रत्येक
कार्य के लिये आवश्यक समय उपलब्ध हो जाता है। समय एक महत्वपूर्ण संसाधन है। समय प्रबन्धन
विद्यालय के प्रत्येक कार्य से जुड़ा है, जैसे-पाठ्यक्रम को सही समय पर पूरा करना, समय पर मूल्यांकन
करना, परीक्षा परिणाम घोषित करना, छात्रवृत्ति का समय पर वितरण आदि। इसका समूचित प्रबन्धन
कर प्रधानाध्यापक कार्य को सही ढंग से करने के साथ-साथ धन,श्रम और ऊर्जा का अपव्यय रोक
सकता है।
7. चरित्र
 चरित्र प्रत्येक मनुष्य का नितान्त व्यक्तिगत गुण है, परन्तु प्रधानाध्यापक का चरित्र निजी सम्पत्ति
की अपेक्षा सार्वजनिक महत्व का अधिक होता है। प्राधानाध्यापक के विशुद चरित्र एवं आचरण से जहाँ
एक ओर शिक्षक भयमुक्त होना शिक्षण कार्य करते हैं, वहीं दूसरी ओर प्रधानाध्यापक के आदर्श चरित्र


एवं आचरण को जाने-अनजानें में शिक्षक अपनी जीवन शैली में भी समाविष्ट करते हैं। 
8. सकारात्मक सोच
 प्रत्येक प्रधानाध्यापक अपने निर्धारित क्षेत्र में प्रगति के लिए तरह-तरह के प्रयास करता है। कुछ
संस्था प्रमुख निश्चित की गई प्रगति को समय में प्राप्त कर लेते हैं तथा कुछ को विभिन्न प्रकार की
समस्याओं से जूझना पड़ता है। एक सकारात्मक सोच वाला प्रधानाध्यापक विद्यालय में कम संसाधनों के
होते हुए भी अपने अच्छे प्रशासन एवं प्रबन्ध कौशल के आधार पर अपने निर्धारित लक्ष्य को समय सीमा
में ही प्राप्त कर लेता है तथा कार्यरत अभिकर्मियों का मनोबल भी बढ़ाता है।

 प्रधानाध्यापक का देश तथा समाज की उन्नति से प्रत्यक्ष सम्बन्ध जुड़ा होता है। यदि वह
उपर्युक्त गुणों से विभूषित नहीं है तो वह अपने पद के कत्र्तव्यों एवं दायित्वों का सम ुचित ढंग से


निर्वहन नहीं कर सकता। अतः प्रधानाध्यापक के सफल प्रबन्धन के लिये अवश्यक है कि उसमें लोगों
को समझाने की शक्ति, कार्य की प्रति लगाव, दृढ़ता, हितो तथा परिस्थितियो ं को समझने की क्षमता
उत्तरदायित्व, बैद्धिक क्षमता, सामाजिक चेतना, पहल करने की क्षमता, साहस, मानवीय समबन्ध स्थापित
करने की योग्यता, व्यावसायिक ज्ञान, निष्ठा, कुशल प्रशासकीय क्षमता उच्च चरित्र आदि गुण को। वह
इन्हीं गुणों के आधार पर बदले परिदृश्य में अपनी संस्था का सफल प्रबन्धन कर संस्था को निर्धारित
समय सीमा में अपने अभिकर्मियों के सहयोग से लक्ष्य तक पहुंचा सकता है तथा उसका विद्यालय सर्व
सुविधायुक्त गुणात्मक शिक्षा से परिपूर्ण  एक अच्छा विद्यालय होगा।
जीवन कौशल Notes 1
जीवन कौशल Notes 3

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